Sufi Prem-3
यह सूफी प्रेम है जो हिन्दुस्तान की रगों में ख़ून की तरह उतर गया।
कब चिश्तिया, नक्शबन्दिया, कादरिया या सुहरवर्दिया सम्प्रदाय सूफीमत को हिन्दुस्तान में ले आये इसका तारीखों के हवाले से जो जवाब इतिहास देता है वो मेरे विचार से सही नहीं है । वो सूफी संप्रदाय के आगमन की तारीखें हैं। सूफी विचारधारा की हिन्दुस्तान के दिलों पर छाप की तारीखें नहीं हैं । कब हिन्दुस्तानी दिल यह महसूस करने लगा कि…
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम बटी का मदवा पिलाइके
मतवाली कर दीनी रे मोसे नैना मिलाइके…
इन पंक्तियों के रचियता हज़रत अमीर खुसरो को किस पल सूफी प्रेम की अगन ने जला कर कुंदन बनाया, कौन जानता है? कब उन्हें लगा कि…”तू मुन शुदी मुन तू शुदम, मुन तन शुदी तू जाँ शुदम”… यानी तू मैं हो गया मैं तू हो गया,मैं तन हो गया तू जान हो गया । प्रेम जब-जब सांसारिक घेरों से निकल कर सूफी दायरे में गया तो यही तो हुआ। शुरूआती दौर में सूफी प्रेम ज़रुरत भी था, इबादत भी । हालांकि मेरे विचार से प्रेम इबादत का ढंग नहीं है, ढंग की इबादत है…जो न विधि -विधान से बोझल है और न तौर-तरीके से वाकिफ। यह उन्मुक्त मन की प्रेम गगन में उड़ान है, अपने अस्तित्व का अर्पण है और रूह का समर्पण है। यह हज़रत अमीर खुसरो के लहजे में “आज रंग है” । हिन्दुस्तान की हिन्दवी में रंग । लेकिन यह वहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी रंगीनी में पूरा हिन्दुस्तान है। पंजाब की धरती पे पंजाबी में बात करते हुए जब बाबा बुल्ले शाह लिखते हैं…
जो रंग रंगिया गूढ़ा रंगिया
मुर्शिद वाली लाली ओ यार
अहद विच्चों अहमद होया
विच्चों मीम निकली ओ यार
तब वो खुसरो वाले प्रेम की ही बात करते हैं।#SufiPrem_3

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