December 26, 2009

Geeta, Geetkaari Aur Faiz-6

फैज़ साहिब की एक नज़्म ” ख़ुदा वो वक़्त न लाये” का ज़िक्र करना भी मैं ज़रूरी समझता हूँ, उनके संग्रह “नक्श-ए-फ़रियादी” में इस नज़्म के अलावा उनकी और भी कई नज्में हैं! इस नज़्म का एक बंद देखिये:

ग़रूर-ए-हुस्न सरापा नयाज़ हो तेरा

तबील रातों में तू भी क़रार को तरसे

तेरी निगाह किसी ग़म ग़ुसार को तरसे

ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे…

अब इसके साथ ही मैं “आये दिन बहार के” फिल्म का आनंद बख्शी साहिब का ये गीत भी उद्धरित कर रहा हूँ:

मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

मुझे ग़म देने वाले तू ख़ुशी को तरसे

तू फूल बने पतझड़ का तुझपे बहार न आये कभी…

बख्शी साहिब के इस गीत की ज़मीन, अंदाज़ और बयान काफी हद तक उक्त नज़्म के उद्धरित बंद से प्रभावित हैं ! और ये गीत आगे चल कर कहता है…’तू फूल बने पतझड़ का तुझपे बहार न आये कभी’…यानि लगभग वही बात कि ‘ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे’! हिंदी फ़िल्मी गीतों पर फैज़ की ज़मीन और ख़्याल का असर इतना गहरा है कि चाहते न चाहते वो गीतकारों को अपनी और खींच ही लेता है! साहिर साहिब का लिखा ‘शगुन’ फिल्म का एक गीत है:

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो…

एक और प्रसिद्ध गीतकार हैं राजा मेंहदी अली खां जिन्होंने सत्तर के दशक में बहुत से गीत दिए फिल्मों में! उनके गीतों से सजी फिल्म ‘आपकी परछाईँयां’ बहुत चर्चित और सफल फिल्म रही जिसमें एक गीत था:

अगर मुझसे मोहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो…

यकीनन पाठकों ने इस गीत को भी सुना होगा! और ‘नक्श-ए-फ़रियादी’ में फैज़ साहिब की एक नज़्म है जिसका शीर्षक है ‘हसीना-ए-ख़्याल से’, ये नज़्म इस तरह शुरू होती है:

मुझे दे दो

रसीले होंठ, मासूमाना पेशानी, हंसीं आँखें…

यहाँ उक्त दोनों गीतों में गीतकारों ने फैज़ की ज़मीन के ठीक बरक्स ज़मीन से गीत को जन्म दिया है! गीतकारों ने एक सिरा फैज़ से उधार लिया और अपने तरीके से उसको फैज़ से बिलकुल विरोधी ज़मीन पर बढ़ा दिया!#OnFaiz

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