December 26, 2009

Sufi Prem-4

बताते हैं कि जिस प्रेम में  ” मैं” नहीं वो सूफी प्रेम है । पंजाब की मिट्टी में जो सूफियाना महक है वो इसी रंग और प्रेम के कारण ही तो है । पंजाब की प्रेम कहानियां इसी रंग से तो ओत -प्रोत हैं। जिनमें मैं से ज्यादा तू की चिंता है । मैं फकीरी में भी राज़ी है-फाकों में भी, अगर तू खुश है । यह तू “खुदा” भी है “खुदा जैसा कोई” भी । इसीलिए तो बाबा बुल्ले शाह भी कहते हैं कि  “तुहियों हैं मैं नाहीं वे सजना’ । समाज ने हमेशा प्रेम को मर्यादा में बांधने की कोशिश की है ,वो समाज चाहे आज का हो या आज से  पाँच सौ या हज़ार साल पुराना । समाज ने झूठी इज़्जत के मकबरे पर सच्चे प्रेमियों की बली दी है, रस्मी रिश्तों में जकड़ा हुआ समाज रुहानी रिश्तों को शक़ की नज़र से देखता रहा है और देखता रहेगा । धर्म के छलावे में मर्म तक किसी भी युग का समाज ना पहुँचा है और ना ही कभी पहुँचेगा । #SufiPrem_4

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