Sufi Prem-6
सूफी प्रेम के सूत्र हिन्दोस्तान में निराकार प्रेम या साकार प्रेम की सीमित मान्यताओं से कहीं अलग खड़े हैं । सूफी प्रेम तो है ही शर्त विहीन प्रेम फिर उसे साकार या निराकार के बन्धन में कैसे बांधा जा सकता है? इस प्रेम का सम्बन्ध सिर्फ और सिर्फ पाकीज़गी से है, विशुद्धता से है । इस दृष्टिकोण से मुझे प्रेम दिवानी मीरा भी सूफी धरातल पर खड़ी एक प्रेमिका लगती है ।
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द ना जाने कोए
सूली ऊपर सेज म्हारी सोवन किस विध होए
गगन मण्डल पर सेज पिया की किस विध मिलना होए
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी…
मुझे नहीं लगता कि मीरा की इस बात में और बुल्ले शाह की ‘इश्क़ असां नाल ऐही कीती’ के मर्म में कोई अन्तर है । दोनों इश्क़-प्रेम में सराबोर हैं, दोनों की हालत कोई नहीं समझ रहा, दोनों को दुनिया की बातें सुननी पड़ रही हैं । यहां अपने कथन को और आधार प्रदान करने के लिये मैं बुल्ले शाह की एक और काफी का ज़िकर करना ज़रूरी समझता हूँ…
मेरे घर आया पिया हमरा
वाह वाह वहदत कीना शोर
अनहद बंसरी दी घनघोर
मेरे घर आया पिया हमरा
#SufiPrem_6
One response to “Sufi Prem-6”
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वाह, बहुत सुंदर जनाब।